अनुवाद

फ़रवरी 12, 2009

अंतिम राजकीय तर्क

(कविता – स्तेफ़ान स्पेंडर)

बंदूकें धन के अंतिम कारण के हिज्जे बताती हैं
बसंत में पहाड़ों पर सीसे के अक्षरों में
लेकिन जैतून के पेड़ों के नीचे मरा पड़ा वो लड़का
अभी बच्चा ही था और बहुत अनाड़ी भी
उनकी महती आँखों के ध्यान में आने के लिए।
वो तो चुंबन के लिए बेहतर निशाना था।

जब वो ज़िंदा था, मिलों की ऊँची चिमनियों ने उसे कभी नहीं बुलाया।
ना ही रेस्तराँ के शीशों के दरवाज़े घूमे उसे अंदर ले लेने के लिए।
उसका नाम कभी अखबारों में नहीं आया।
दुनिया ने अपनी पारंपरिक दीवार बनाए रक्खी
मृतकों के चारों तरफ़ और अपने सोने को भी गहरे दबाए रक्खा,
जबकि उसकी ज़िंदगी, शेयर बाज़ार की अगोचर अफ़वाह की तरह, बाहर भटकती रही।

अरे, उसने अपनी टोपी खेल-खेल में ही फेंक दी
एक दिन जब हवा ने पेड़ों से पंखुड़ियाँ फेंकीं।
फूलहीन दीवार से बंदूकें फूट पड़ीं,
मशीन गन के गुस्से ने सारी घास काट डाली;
झंडे और पत्तियाँ गिरने लगे हाथों और शाखों से;
ऊनी टोपी बबूल में सड़ती रही।

उसकी ज़िंदगी पर गौर करो जिसकी कोई कीमत नहीं थी
रोज़गार में, होटलों के रजिस्टर में, खबरों के दस्तावेज़ों में
गौर करो। दस हज़ार में एक गोली एक आदमी को मारती है।
पूछो। क्या इतना खर्चा जायज़ था
इतनी बचकानी और अनाड़ी ज़िंदगी पर
जो जैतून के पेड़ों के नीचे पड़ी है, ओ दुनिया, ओ मौत?

अनुवादक : अनिल एकलव्य

Advertisement

फ़रवरी 7, 2009

जो सच में महान थे

(कविता – स्तेफ़ान स्पेंडर)

मैं हमेशा उनके बारे में सोचता हूँ जो सच में महान थे

मैं हमेशा उनके बारे में सोचता हूँ जो सच में महान थे।
जिन्होंने, गर्भ से, आत्मा के इतिहास को याद किया
रोशनी के गलियारों से होते हुए जहाँ समय के सूरज होते हैं
अंतहीन और गाते हुए, जिनकी खूबसूरत महत्वाकांक्षा
थी कि उनके होंठ, अब भी आग की तपन से लैस,
सिर से पैर तक गीत पहने उस जीवट की बात कहें
और जिन्होंने बसंत की शाखों से जमा कर लीं
चाहतें जो उसके शरीर पर फैली थीं मंजरियों जैसे

बेशकीमती है कभी न भूलना
अमर बसंत के रक्त से लिया गया आह्लाद का सार
हमारी पृथ्वी के पहले की दुनियाओं से चट्टानें तोड़ कर आते हुए,
कभी ना नकारना सुबह के सहज प्रकाश में इसके आनंद को
ना ही इसकी शाम की प्रेम की गंभीर मांग को।
यातायात को कभी आहिस्ता से ना घोंटने देना
शोर से और धुंध से इस जीवट का पनपना।

बर्फ़ के पास, सूरज के पास, सबसे ऊंचे मैदानों में
देखो कैसे इन नामों का सम्मान हो रहा है लहराती घास द्वारा
और सफ़ेद बादलों की नावों के द्वारा
और ध्यान से सुन रहे आकाश में हवा की फुसफुसाहट द्वारा
जिन्होंने अपने दिल में रखा आग के मरकज़ को,
सूरज से जन्मे वे कुछ समय सूरज की तरफ ही चल पड़े,
और चंचल हवा पर अपने मान के हस्ताक्षर छोड़ गए।

अनुवादक : अनिल एकलव्य

WordPress.com पर ब्लॉग.