अनुवाद

जुलाई 8, 2012

ईश्वर का साथ हमारे साथ

(गीत: बॉब डिलन)

मेरा नाम, अरे, कुछ नहीं है
मेरी उम्र का अर्थ और भी कम
मैं जिस देश से आया हूँ
उसको सब कहते हैं मिडवेस्ट
मुझको वहाँ यह पढ़ाया और सिखाया गया
कानून की राह पर चलना
और यह कि जिस देश में मैं रहता हूँ
ईश्वर का साथ उसके साथ है

अरे भाई, इतिहास की किताबें बताती हैं
और इतना बढ़िया बताती हैं
घुड़सवारों ने धावा बोला
और इंडियंस कट गए
घुड़सवारों ने धावा बोला
और इंडियंस मर गए
अरे, देश तब जवान था
और ईश्वर का साथ उसके साथ था

अरे स्पेनी-अमरीकन युद्ध
का भी अपना समय था
और गृह-युद्ध को भी जल्दी ही
पीछे को छोड़ दिया गया
और नायकों के नामों को भी
मुझको रटवाया गया
उनके हाथ ज्यों बंदूकें थीं, वैसे ही
ईश्वर का साथ उनके साथ था

अरे, प्रथम विश्व-युद्ध का भी, यारों
समय आया और चला गया
लड़ाई का कारण लेकिन
मेरे पल्ले कभी नहीं पड़ा
पर मैंने उसे मानना सीख लिया
और मानना भी गर्व के साथ
क्योंकि अपन मरों को नहीं गिनते
जब ईश्वर का साथ अपने साथ हो

जब दूसरा विश्व-युद्घ भी
अपने अंजाम को पा गया
हमने जर्मनों को माफ़ कर दिया
और अपना दोस्त बना लिया
चाहे साठ लाख की उन्होंने हत्याएँ की हों
उनको भट्टियों में झुलसा कर
अब जर्मनों के लिए भी
ईश्वर का साथ उनके साथ था

मैंने रुसियों से घृणा करना सीख लिया
अपनी पूरी ज़िंदगी के लिए
अगर एक और युद्ध होता है
हमें उनसे लड़ना ही होगा
उनसे घृणा करनी होगी और डरना होगा
भागना होगा और छिपना होगा
और यह सब बहादुरी से मानना होगा
ईश्वर का साथ अपने साथ रख कर

पर अब हमारे पास हथियार हैं
जो रासायनिक रेत से बने हैं
अगर उन्हें पड़ता है किसी पर दागना
तो दागना तो हमें पड़ेगा ही
एक बटन का दबाना
और एक धमाका पूरी दुनिया में
और तुम सवाल कभी नहीं पूछोगे
जब ईश्वर का साथ तुम्हारे साथ हो

अनेक अंधेरी घड़ियों में
मैंने इस बारे में सोच के देखा है
कि ईसा मसीह के साथ विश्वासघात
एक चुंबन के साथ हुआ था
पर मैं तुम्हारे लिए नहीं सोच सकता
तुम्हें खुद ही तय करना होगा
कि क्या जूडस इस्कैरियट
के भी साथ ईश्वर का साथ था

तो अब जब मैं तुम्हें छोड़ रहा हूँ
मैं ऊब और उकता चुका हूँ
जिस संभ्रम में मैं फँसा हूँ
कोई ज़बान जो है बता नहीं सकती
शब्दों से मेरा सिर भरा है
और नीचे फ़र्श पर भी वो गिरे हैं
अगर ईश्वर का साथ हमारे साथ है
तो वो अगले युद्ध को रोक देगा

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नवम्बर 16, 2010

नर्क का ध्यान

(कविता: बर्तोल ब्रेख़्त)

नर्क का ध्यान करते हुए, जैसा कि एक बार मैंने सुना था,
मेरे भाई शेली ने उसे एक ऐसी जगह पाया था
जो काफ़ी कुछ लंदन जैसी ही है। मैं,
जो लंदन में नहीं रहता, बल्कि लॉस एंजेलेस में रहता हूँ,
पाता हूँ, नर्क का ध्यान करने पर, कि यह
और भी अधिक लॉस एंजेलेस जैसी ही होनी चाहिए।

और नर्क में ही,
मुझे कोई शक नहीं है, ऐसे शानदार बाग हैं
जहाँ फूल इतने बड़े होते हैं जितने पेड़, मुरझाते हुए,जाहिर है,
बहुत जल्दी, अगर उन्हें अत्यंत मँहगे पानी से न सींचा जाए। और फलों के बाज़ार
फलों के भारी ढेरों के साथ, जिनमें कि इस सबके बावजूद

न तो कोई महक होती है न ही स्वाद। और मोटरों की अंतहीन कड़ियाँ,
अपनी छायाओं से भी हल्की, और दौड़ते हुए
मूढ़ विचारों से भी अधिक तेज़, झिलमिलाते वाहन, जिनमें
गुलाबी लोग, न कहीं से आते हुए, न कहीं जाते हुए।
और मकान, खुशी के लिए प्रारूपित, खाली पड़े हुए,
तब भी जब बसे हुए।

नर्क के भी घर सब इतने तो बदसूरत नहीं होते।
पर सड़क पर फेंक दिए जाने की चिंता
आलीशान मकानों के निवासियों को भी
उतना ही सताती है जितना कि बैरकों के बाशिंदों को।

(अंग्रेज़ी से अनुवाद: अनिल एकलव्य)

नवम्बर 15, 2010

एक जर्मन युद्ध पुस्तिका से

(कविता: बर्तोल ब्रेख़्त)

ऊँची जगहों पर आसीन लोगों में
भोजन के बारे में बात करना अभद्र समझा जाता है।
सच तो यह है: वो पहले ही
खा चुके हैं।

जो नीचे पड़े हैं, उन्हें इस धरती को छोड़ना होगा
बिना स्वाद चखे
किसी अच्छे माँस का।

यह सोचने-समझने के लिए कि वो कहाँ से आए हैं
और कहाँ जा रहे हैं
सुंदर शामें उन्हें पाती हैं
बहुत थका हुआ।

उन्होंने अब तक नहीं देखा
पर्वतों को और विशाल समुद्र को
और उनका समय अभी से पूरा भी हो चला।

अगर नीचे पड़े लोग नहीं सोचेंगे
कि नीचा क्या है
तो वे कभी उठ नहीं पाएंगे।

भूखे की रोटी तो सारी
पहले ही खाई जा चुकी है

माँस का अता-पता नहीं है। बेकार है
जनता का बहता पसीना।
कल्पवृक्ष का बाग भी
छाँट डाला गया है।
हथियारों के कारखानों की चिमनियों से
धुआँ उठता है।

घर को रंगने वाला बात करता है
आने वाले महान समय की

जंगल अब भी पनप रहे हैं।
खेत अब भी उपजा रहे हैं
शहर खड़े हैं अब भी।
लोग अब भी साँस ले रहे हैं।

पंचांग में अभी वो दिन नहीं
दिखाया गया है

हर महीना, हर दिन
अभी खुला पड़ा है। इन्हीं में से किसी दिन
पर एक निशान लग जाने वाला है।

मज़दूर रोटी के लिए पुकार लगा रहे हैं
व्यापारी बाज़ार के लिए पुकार लगा रहे हैं।
बेरोजगार भूखे थे। रोजगार वाले
अब भूखे हैं।
जो हाथ एक-दूसरे पर धरे थे अब फिर व्यस्त हैं।
वो तोप के गोले बना रहे हैं।

जो दस्तरख्वान से माँस ले सकते हैं
संतोष का पाठ पढ़ा रहे हैं।
जिनके भाग्य में अंशदान का लाभ लिखा है
वो बलिदान माँग रहे हैं।
जो भरपेट खा रहे हैं वही भूखों को बता रहे हैं
आने वाले अद्भुत समय की बात।
जो अपनी अगवानी में देश को खाई में ले जा रहे हैं
राज करने को बहुत मुश्किल बता रहे हैं
सामान्य लोगों के लिए।

जब नेता शान्ति की बात करते हैं
तो जनता समझ जाती है
कि युद्ध आ रहा है।
जब नेता युद्ध को कोसते हैं
लामबंदी का आदेश पहले ही लिखा जा चुका होता है।

जो शीर्ष पर बैठे हैं कहते हैं: शान्ति
और युद्ध
अलग पदार्थों से बने हैं।
पर उनकी शान्ति और उनके युद्ध
वैसे ही हैं जैसे आँधी और तूफ़ान।

युद्ध उनकी शान्ति से ही उपजता है
जैसे बेटा अपनी माँ से
उसकी शक्ल
अपनी माँ की डरावनी शक्ल से मिलती है।

उनका युद्ध मार देता है
हर उस चीज़ को जिसे उनकी शान्ति ने
छोड़ दिया था।

दीवार पर लिख दिया गया:
वो युद्ध चाहते हैं।
जिस आदमी ने यह लिखा
वो पहले ही गिर चुका है।

जो शीर्ष पर हैं कहते हैं:
वैभव और कीर्ति का रास्ता इधर है।
जो नीचे हैं कहते है:
कब्र का रास्ता इधर है।

जो युद्ध आ रहा है
वो पहला नहीं होगा। और भी थे
जो इसके पहले आए थे।
जब पिछला वाला खत्म हुआ
तब विजेता थे और विजित थे।
विजितों में आम लोग भी थे
भुखमरे। विजेताओं में भी
आम लोग भुखमरी का शिकार हुए।

जो शीर्ष पर हैं कहते हैं साहचर्य
व्याप्त है सेना में।
इस बात का सच देखा जा सकता है
रसोई के भीतर।
उनके दिलों में होना चाहिए
वही एक शौर्य। लेकिन
उनकी थालियों में
दो तरह के राशन हैं।

जहाँ तक कूच करने की बात है उनमें से कई
नहींं जानते

कि उनका शत्रु तो उनके सिर पर ही चल रहा है।
जो आवाज़ उनको आदेश दे रही है
उनके शत्रु की आवाज़ है और
जो आदमी शत्रु की बात कर रहा है
वो खुद ही शत्रु है।

यह रात का वक़्त है
विवाहित जोड़े
अपने बिस्तरों में हैं। जवान औरतें
अनाथों को जन्म देंगी।

सेनाधीश, तुम्हारा टैंक एक शक्तिशाली वाहन है
यह जंगलों को कुचल देता है और सैकड़ों लोगों को भी।
पर उसमें एक खोट है:
उसे एक चालक की ज़रूरत होती है।

सेनाधीश, तुम्हारा बमवर्षी बहुत ताकतवर है,
यह तूफ़ान से भी तेज़ उड़ता है और एक हाथी से ज़्यादा वज़न ले जा सकता है।
पर उसमें एक खोट है:
उसे एक मेकैनिक की ज़रूरत होती है।

सेनाधीश, आदमी बड़े काम की चीज़ है।
वो उड़ सकता है और मार सकता है।
पर उसमें एक खोट है:
वो सोच सकता है।

अंग्रेज़ी से अनुवाद: अनिल एकलव्य

नवम्बर 13, 2010

मैक चाकू

(गीत: बर्तोल ब्रेख़्त)

(कुर्त वाइल के साथ ‘थ्री पेनी ओपेरा’ के लिए)

अरे, शार्क के दाँत बड़े सलोने हैं, प्यारे
और वो उन्हें दिखाती है मोती सी चमक से।
मकीथ के पास बस एक चाकू है, प्यारे
और वो उसे रखता है दूर सबकी नज़र से।

जब शार्क काटती है अपने दाँतों से, प्यारे
तो लाली लहरा के शुरू होती है फैलना।
मँहंगे दस्ताने, मगर, मकीथ पहने है, प्यारे
ताकि लाली का नामो-निशान मिले ना।

फुटपाथ पर इतवार की सुबह
एक शरीर से ज़िंदगी रिसती है;
नुक्कड़ पर कोई मंडरा रहा है
क्या ये वही मैक शैली चाकू है?

नदी तट पर एक कर्षण नौका से
एक सीमेंट की बोरी गिरी जा रही है;
सीमेंट तो बस वज़न के लिए है, प्यारे।
हो न हो मैकीं शहर में लौट आया है।

और लुई मिलर गायब हो गया है, प्यारे
अपनी सारी नकदी-वकदी निकाल कर;
और मकीथ नाविक के जैसे पैसा उड़ाए है।
क्या भाई ने कुछ कर दिया है जोश में आकर?

सूकी टॉड्री, जेनी डाइवर इधर,
पॉली पीचम, लूसी ब्राउन उधर,
अरे, लाइन तो दाएँ से बनती है, प्यारे
क्योंकि मैकी जो वापिस है इसी शहर।

अंग्रेज़ी से अनुवाद: अनिल एकलव्य

फ़रवरी 12, 2009

अंतिम राजकीय तर्क

(कविता – स्तेफ़ान स्पेंडर)

बंदूकें धन के अंतिम कारण के हिज्जे बताती हैं
बसंत में पहाड़ों पर सीसे के अक्षरों में
लेकिन जैतून के पेड़ों के नीचे मरा पड़ा वो लड़का
अभी बच्चा ही था और बहुत अनाड़ी भी
उनकी महती आँखों के ध्यान में आने के लिए।
वो तो चुंबन के लिए बेहतर निशाना था।

जब वो ज़िंदा था, मिलों की ऊँची चिमनियों ने उसे कभी नहीं बुलाया।
ना ही रेस्तराँ के शीशों के दरवाज़े घूमे उसे अंदर ले लेने के लिए।
उसका नाम कभी अखबारों में नहीं आया।
दुनिया ने अपनी पारंपरिक दीवार बनाए रक्खी
मृतकों के चारों तरफ़ और अपने सोने को भी गहरे दबाए रक्खा,
जबकि उसकी ज़िंदगी, शेयर बाज़ार की अगोचर अफ़वाह की तरह, बाहर भटकती रही।

अरे, उसने अपनी टोपी खेल-खेल में ही फेंक दी
एक दिन जब हवा ने पेड़ों से पंखुड़ियाँ फेंकीं।
फूलहीन दीवार से बंदूकें फूट पड़ीं,
मशीन गन के गुस्से ने सारी घास काट डाली;
झंडे और पत्तियाँ गिरने लगे हाथों और शाखों से;
ऊनी टोपी बबूल में सड़ती रही।

उसकी ज़िंदगी पर गौर करो जिसकी कोई कीमत नहीं थी
रोज़गार में, होटलों के रजिस्टर में, खबरों के दस्तावेज़ों में
गौर करो। दस हज़ार में एक गोली एक आदमी को मारती है।
पूछो। क्या इतना खर्चा जायज़ था
इतनी बचकानी और अनाड़ी ज़िंदगी पर
जो जैतून के पेड़ों के नीचे पड़ी है, ओ दुनिया, ओ मौत?

अनुवादक : अनिल एकलव्य

फ़रवरी 7, 2009

जो सच में महान थे

(कविता – स्तेफ़ान स्पेंडर)

मैं हमेशा उनके बारे में सोचता हूँ जो सच में महान थे

मैं हमेशा उनके बारे में सोचता हूँ जो सच में महान थे।
जिन्होंने, गर्भ से, आत्मा के इतिहास को याद किया
रोशनी के गलियारों से होते हुए जहाँ समय के सूरज होते हैं
अंतहीन और गाते हुए, जिनकी खूबसूरत महत्वाकांक्षा
थी कि उनके होंठ, अब भी आग की तपन से लैस,
सिर से पैर तक गीत पहने उस जीवट की बात कहें
और जिन्होंने बसंत की शाखों से जमा कर लीं
चाहतें जो उसके शरीर पर फैली थीं मंजरियों जैसे

बेशकीमती है कभी न भूलना
अमर बसंत के रक्त से लिया गया आह्लाद का सार
हमारी पृथ्वी के पहले की दुनियाओं से चट्टानें तोड़ कर आते हुए,
कभी ना नकारना सुबह के सहज प्रकाश में इसके आनंद को
ना ही इसकी शाम की प्रेम की गंभीर मांग को।
यातायात को कभी आहिस्ता से ना घोंटने देना
शोर से और धुंध से इस जीवट का पनपना।

बर्फ़ के पास, सूरज के पास, सबसे ऊंचे मैदानों में
देखो कैसे इन नामों का सम्मान हो रहा है लहराती घास द्वारा
और सफ़ेद बादलों की नावों के द्वारा
और ध्यान से सुन रहे आकाश में हवा की फुसफुसाहट द्वारा
जिन्होंने अपने दिल में रखा आग के मरकज़ को,
सूरज से जन्मे वे कुछ समय सूरज की तरफ ही चल पड़े,
और चंचल हवा पर अपने मान के हस्ताक्षर छोड़ गए।

अनुवादक : अनिल एकलव्य

जनवरी 9, 2009

दोपहर के खाने के बाद

(कविता – हैरॉल्ड पिंटर)

और दोपहर के बाद आते हैं सजे-धजे प्राणी
लाशों में सूंघने के लिए
और करने के लिए अपना भोजन

और तोड़ लेते हैं ये ढेर से सजे-धजे प्राणी
फूले हुए नाशपाती धूल से
और मिनेस्त्रोन-सूप हिलाते हैं बिखरी हड्डियों से

और जब हो जाता है भोजन
वे वहीं पसर जाते हैं आराम से
निथारते हुए लाल मदिरा को सुविधाजनक खोपड़ियों में

अनुवादक: अनिल एकलव्य

जनवरी 8, 2009

मैं कुछ बातें समझाना चाहूंगा

(कविता – पाब्लो नेरूदा)

फिर एक सुबह सब कुछ जल रहा था,
एक सुबह लपटें
उठ रही थीं ज़मीन से
इंसानों को खाती हुई
और फिर तब से आग,
बारुद फिर तब से,
और फिर तब से खून,

डकैत विमानों और मूरों के साथ,
डकैत अंगूठियों और डचेसों के साथ,
डकैत काले चोगे पहने आशीर्वाद छिड़काते फ़्रायरों के साथ,
आसमान से आए बच्चों को मारने के लिए
और बच्चों का खून बह रहा था गलियों में
किसी झंझट के बिना, जैसे बच्चों का खून बहता है।

सियार जिनसे सियार भी नफ़रत करेंगे
पत्थर जिनको खा कर कांटेदार पौधे थूक देंगे,
ज़हरीले नाग जिनसे ज़हरीले नाग भी घृणा करेंगे।

तुम्हारे आमने-सामने मैंने देखा है खून
स्पेन का, ज्वार की तरह मीनार जितना उठता हुआ
तुम्हें एक लहर में डुबाने के लिए
घमंड और खंजरों की

धोखेबाज़
सेनाधीशों:
मेरे मरे हुए घर को देखो,
टूटे हुए स्पेन को देखो:
हर घर से जलता लोहा बहता है
फूलों की बजाय
स्पेन के हर कोने से
स्पेन उभरता है
और हर मृत बच्चे से एक राइफ़ल जिसकी आंखें हैं
और हर अपराध से गोलियां पैदा होती हैं
जो एक दिन ढूंढ लेंगी
तुम्हारे दिल का निशाना

और तुम पूछोगे: इसकी कविता क्यों नहीं बात करती
स्वप्नों और पत्तों की
और इसके अपने देश के ज्वालामुखियों की

आओ और देखो खून को जो गलियों में बह रहा है।
आओ और देखो
खून को जो गलियों में बह रहा है।
आओ और देखो खून को
जो गलियों में बह रहा है!

अनुवादक: अनिल एकलव्य

[ नाथानिएल टार्न के अंग्रेज़ी अनुवाद से अनुवादित, पाब्लो नेरूदा: चयनित कविताएं, प्रकाशक जॉनाथन केप, 1970, लंदन। साभार द रैंडम हाउस ग्रुप लिमिटेड। ]

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