अनुवाद

फ़रवरी 5, 2009

हँसी

(कविता – हैरॉल्ड पिंटर)

हँसी थम जाती है पर कभी नहीं होती खत्म
हँसी झुठाने में लगा देती है अपना पूरा दम
हँसी हँसती है उस पर जो है अनकहा हर दम
ये झरती है और किकयाती है और रिसती है दिमाग़ में
ये झरती है और किकयाती है लाशों के दिमाग़ों में
यूँ सारे झूठ हँसते-हँसते किए जाते हैं फ़राहम
जिन्हें सोख लेती है सिर कटी लाशों की हँसी बेदम
जिन्हें सोख लेते हैं हँसती लाशों के मुँह हर कदम

अनुवादक : अनिल एकलव्य

टिप्पणी करे »

अभी तक कोई टिप्पणी नहीं ।

RSS feed for comments on this post. TrackBack URI

टिप्पणी करे

WordPress.com पर ब्लॉग.